Wednesday, March 13, 2024

holi snrs maran

होली आये इससे पहले ही बचपन जाग उठता है। दादी के साथ गांव में होली मनाना  आज भी याद आता है। गांव में सबसे पहले हमारा घर था दादी बड़ी बुजुर्ग,इसलिए पहली फाग वहीं बड़े चबूतरे पर शुरू होती। 10 दिन पहले से ही  ढोलक, झाँझ - मंजीरे  बजने लगते। पहले फाग -होरी  गाते फिर मिठाई,ठंडाई और गुलाल की बारी आती। गाँव के सभी बाशिंदे  अगले दिन से हर घर  में बैठक लगाते। जहाँ  शोक के बाद पहली होली मानती वहाँ रंग डाला जाता था।  इसमें बच्चे शामिल नहीं  किये जाते तो हम छत पर बैठ कर चुपके से देखा करते।  ठंडाई पीने के बाद उनके गाने- बजाने के शोर  और हास्य -व्यंग्य और तेज़ हो जाते ।  भाँग के कुछ अंश का असर जो होता था उसमें। हम बच्चों के लिए वह आयोजन आश्चर्य और  आकर्षण का होता। 
   -- फिर नैनीताल की होली विशेष थी। 5-6 साल की उम्र में जब सब बच्चे स्वांग - बहुरुपिये बन कर घर - घर चंदा के पैसे माँगने जाते।  मुझे अंग्रेज़ी जेंटलमैन का रूप दिया जाता। कोट,पेंट और हेट पहना कर। सबसे छोटी होने के कारण मुझे अलग से  मिलते थे।  यूँ चार आने से ज्यादा कोई देता नहीं था।  तब 2-3 रु. भी बड़ी रकम लगती थी। जिसका  होली का प्रसाद लिया जाता।  और कुछ बड़े हुए तो जयपुर में होली मनी  ढंग से।  होली वह भी बिना रोक टोक के। हम महिलाओं के  ग्रुप में शामिल होकर रंगते-  रँगाते। आस -पास के घरों में -दोस्तों के यहां खूब गाते-  बजाते,खाते पीते, फ़िल्मी  गानों पर अंत्याक्षरी और मस्ती में बेतुके डांस भी  इतना रंगे जाते कि हफ्ते भर रंग छुड़ाना पड़ता।  गुझिये -  मठरी छुपा छुपा कर  खाते । दो कनस्तर  भर कर माँ  जो बनाती थीं।  तब मिलने -जुलने का रिवाज़ था। परिचितों के कुछ घर आना -जाना चलता। होली आये इससे पहले ही बचपन जाग उठता है। दादी के साथ गांव में होली मनाना आज भी याद अता है। सबसे पहले हमारा ही बड़े चबूतरे पर फाग जुड़ती। 10 दिन पहले से ही ढोलक, झाँझ मंजीरे बजते पहले फाग -होरी फिर मिठाई,ठंडाई और गुलाल की बारी आती। गांव के सभी बाशिंदे अगले दिन से हर घर में बैठक लगाते। बच्चे शामिल नहीं किये जाते तो हम छत पर बैठ कर चुपके से देखा करते। ठंडाई का असर उनके गाने बजाने के शोर को और तेज़ कर देता। भाँग के अंश का असर जो होता उसमें।
 फिर नैनीताल की होली याद आती 5-6 साल की उम्र में जब सब बच्चे स्वांग - बहुरुपिये बन कर घर घर चंदा पैसे मांगने जाते। मुझे अंग्रेज़ी जेंटलमैन का रूप दिया जाता। कोट पेंट और हेट पहना कर। सबसे छोटी होने के कारण मुख्य हिंसबसे ज्यादा पैसे मिलते थे, यूँ चार आने से ज्यादा कोई देता नहीं था। फिर जयपुर में बड़े होने पर ढंग से होली खिली बिना रोक टेक के। कजुब रंगते रँ गाते आस पास के घरों में -दोस्तों के यहां गाते बजाते। हफ्ते भर रंग छुड़ाते रहते और गुझिये खाते । दो कनस्तर के माँ जो बनाती थीं। तब मिलने जुलने का रिवाज़ थे जो 10 दिन चलते रहते।
-- शादी के बाद पहली होली पर तबियत के कारण मनाने जैसा माहौल नहीं था। उदास मन से बनाया - खाया ही था कि चचेरे देवर और ननद आ गये  पर संकोच में बैठे रहे । मैं भी अपने कमरे में बैठी रही । अचानक जोर से धमक उठी,देवर ने धाड से दरवाज़े पर पैर मारा और कमरे में आकर पीछे से ग़ुलाल का टीका लगाने का   कह कर बालों और चेहरे पर लगा दिया। फिर क्या था बस होली का शगुन और रंग शुरू हो गया। आज भी दरवाज़े के टूटे  हिस्से पर दूसरा फट्टा लगा है या द दिलाता है उस  धाड़ की आवाज़ और  दरवाजे की हालत और सास जी की डांट की । 
ऐसे ही दूसरी होली भी यादगार मनी। पड़ोस में रिश्तेदार आंटी रहने लगीं थीं।उनके यहाँ यू.पी का माहौल था। अकेला देख कर आग्रह से बुलाया तो वहीं चले गये होली पर। रंग खेल कर उन्होंने ठंडाई दी। मना भी किया पर वे पिला कर ही मानी।  बोलीं भाँग है ही नहीं सिर्फ ठंडाई है। पियो जी भर के कुछ नहीं होगा। आशंका बानी थी  पर ले  ली गर्मी के कारण।डेढ़ गिलास भर पी ली। 2 घंटे बाद  घर आये तो सर चकराने लगा। -अजीब सी नीन्द आने  लगी। जैसे तैसे नहाना हुआ फिर जो सोये तो रात 9 बजे उठे। सपने ऐसे देखे जैसे तैर रहें हों। कभी लगता उड़ रही आसमान में। समझ आ गया था कि भाँग का ही असर होगा। अगले दिन शिकायत  मु स्कुरा कर बोलीं बुरा न मानो होली है। अरे,बस जरा सी थी बस,
  -- आज 10 बरस से होली नहीं खेली। अब न वह माहौल रहा, न मिलना जुलना। सब अपने में केंद्रित। सिर्फ यादें हैं होली की। ये उम्र का असर हो या हालात का। जो भी हो अब वह होली रही नहीं। आंनद रस सौहार्द - प्रसन्नता की कमी दिखाई देती है ।
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   2 gilasजो 10 दिन चलते  रहते।
-- शादी के बाद पहली होली  तबियत के कारण  मानाने जैसा माहौल नहीं था।  उदास मन से बनाया खाया  ही था कि चचेरे देवर और ननद आये भी पर मूड देख कर संकोच में बैठे रहे।मैं भी अपने कमरे में बैठी थी। अचानक जोर से धमकी उठी, उसने धाड से दरवाज़े पर पैर मारा और कमरे में आकर पीछे से ग़ुलाल सर मुंह पर लगा दिया। फिर क्या था बस होली का शगुन और रंग शुरू हो गया। आज भी दरवाज़े में टूटा  हिस्से पर दूसरा फट्टा याद दिलाता है  धाड़ कि आवाज़ और टूटा दर्वाज़े  की हालात और सास जी की डांट की  । 
ऐसे ही दूसरी होली भी यादगार  मनी। पड़ोस  में रिश्तेदार आंटी के यहाँ यू पी का माहौल  था। अकेला देख कर आग्रह से बुलाया तो वही चले गये होली पर। रंग खेल कर उन्होंने ठंडाई दी। मना  भी किया पर वे पीला कर ही मानी।  खुथ बोल दिया की भाँग है ही नहीं सिर्फ ठंडाई है। गर्मी थी तो गिलास भर पी ली। 2 घंटे बाद घर आकर सर  चकराने लगा -अजीब सी नींद आने लगी। जैसी तैसे नहाना हुआ फिर जो सोये तो रात 9 बजे उठे।  ऐसे ऐसे सपने देखे जैसी तैर रहें हों कभी लगता उड़ रहें हो आसमान में।  समझ आ गया था कि भाँग का ही असर  होगा। अगले दिन शिकायत कि तो मुस्कुरा कर बोलीं बुरा ँ मानो होली है। अरे बस जरा सी थी बस
  -- आज 10 बरस से होली नहीं खेली न वह माहौल रहा, न मिलना जुलना सब अपने में केंद्रित सिर्फ  यादें हैं होली की। ये उम्र का असर हो या  त्यौहार  का। जो भी अब वह होली रही नहीं। आंनद  रस  सौहार्द - प्रसन्नता की कमी दिखाई देती है।
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   2 gilas

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